लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ भारत में बिकने वाली आधी एंटीबायोटिक्स किसी को मंजूर नहीं होती

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नई दिल्ली 7 सितंबर 2022, बुधवार

रोगियों को ठीक करने के लिए जो औषधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं, जो औषधियाँ डॉक्टर लोगों को लेने की सलाह देते हैं, वे रोगी भगवान की प्रसादी के रूप में ग्रहण करते हैं। ठीक होने के लिए हर मरीज को दवा खानी पड़ती है लेकिन अगर यह दवा गलत है तो यह दवा किस चीज से बनी है? दवा के दुष्प्रभाव क्या हैं? दवा लेने के क्या फायदे हैं? आदि के बारे में निर्णय लेने की एक लंबी प्रक्रिया होती है और इस प्रक्रिया के अंत में सरकार से स्वीकृति लेना अनिवार्य होता है।

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एक चौंकाने वाले शोध के अनुसार, भारत में मरीजों द्वारा बेची और इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं में से 47 प्रतिशत या लगभग आधी दवाओं को निर्माताओं द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है!

अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं ने लगभग 5,000 निर्माताओं के डेटा के आधार पर यह शोध तैयार किया है और इसे चिकित्सा विज्ञान की सबसे प्रसिद्ध शोध पत्रिका लैंसेट के दक्षिण-पूर्व एशिया संस्करण में प्रकाशित किया गया है।

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इस शोध के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाओं में एजिथ्रोमाइसिन और सेफिक्सिम भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाएं हैं।

ये दवाएं निजी कंपनियों द्वारा बेची जाती हैं और भारत में कुल एंटीबायोटिक दवाओं के बाजार में इनकी हिस्सेदारी 85 से 90 प्रतिशत है। सरकारी तंत्र के तहत बिकने वाली दवाओं का हिस्सा महज 15 से 20 फीसदी है। सरकारी दवा वितरण प्रणाली इस शोध में शामिल नहीं है।

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इस शोध के अनुसार पेनिसिलिन, मैक्रोलाइड्स, सेफलोस्पोरिन सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं हैं।

एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक प्रयोग से रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और रोगी की ऐसी दवाओं से बचाव की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है।

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